कविता संग्रह >> कहते हैं तब शहंशाह सो रहे थे कहते हैं तब शहंशाह सो रहे थेउमाशंकर चौधरी
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उमा शंकर की कविताएँ अपने मूल स्वर में राजनीतिक हैं और इनके विषय-वस्तु का क्षेत्र व्यापक है...
उमा शंकर की कविताएँ अपने मूल स्वर में राजनीतिक हैं और
इनके विषय–वस्तु का क्षेत्र व्यापक है। यथार्थवादी विचार व भाव की
इन कविताओं में स्वाभाविक रूप से एक बेचैनी है।
–नामवर सिंह
(‘अंकुर मिश्र स्मृति पुरस्कार-2007’
के निर्णायक के रूप में दी गयी सम्मति)
(‘अंकुर मिश्र स्मृति पुरस्कार-2007’
के निर्णायक के रूप में दी गयी सम्मति)
उमा शंकर चौधरी युवा कवियों में एक जाना-माना नाम है–रघुवीर सहाय की
परम्परा का उत्तर आधुनिक विस्तार ! भूमंडलीकरण के बाद के कस्बे, नगर, गली,
मुहल्ले उनकी कविता में अकबकाए मिलते हैं–जन-जीवन में बिखरी पीड़ा
विवशता और बेचैनी के कई अन्तरंग चित्र इनकी कविता खड़े करती है। राजनीतिक
षड्यन्त्र, आगजनी, हत्या, आतंक, लूटपाट और मूल्यहीनता, आपसी सम्बन्धों में
सहज ऊष्मा का अभाव, अपने आप में इतने बड़े विषय हैं कि ‘कोई कवि
बन जाय सहज सम्भाव्य है’। लेकिन इन बड़े विषयों पर लिखते हुए
बड़बोला होने के ख़तरे बने रहते हैं। उमा शंकर की ख़ासियत यह है कि वे बड़बोला
होने से बचते हैं–कभी फैंटेसी के सहारे, कभी दूसरी महीन तकनीकों
के दम से जो अचानक ब्रेक लगाकर पाठक को झटक देती हैं; आँखों को और अधिक आँखें बनाती हैं, कानों को और अधिक कान, कम-से-कम चौकन्ना तो उसको कर ही देती हैं जो अपने आप में एक बड़ी बात है।
–अनामिका
(‘जनसत्ता’ के स्तम्भ’ रंग-राग’ से)
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